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Sunday, January 19, 2025

चुनावी विज्ञापनों पर कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ भाजपा सुप्रीम कोर्ट पहुंची, 27 मई को होगी सुनवाई


नयी दिल्ली, 24 मई (भाषा) भाजपा ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें एकल न्यायाधीश के उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया गया था जिसमें पार्टी को लोकसभा चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का ‘‘उल्लंघन’’ करने वाले विज्ञापन जारी करने से रोका गया था।

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की अवकाश पीठ के समक्ष मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया गया। पीठ ने इसे 27 मई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

22 मई को उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि वह एकल न्यायाधीश पीठ द्वारा पारित अंतरिम आदेश के खिलाफ अपील पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है।

एकल न्यायाधीश की पीठ ने 20 मई को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 4 जून तक आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले विज्ञापन प्रकाशित करने से रोक दिया था, जिस दिन लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने हैं।

अदालत ने भगवा पार्टी को पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा उल्लिखित विज्ञापनों को प्रकाशित करने से भी रोक दिया, जिसमें उसके और उसके कार्यकर्ताओं के खिलाफ अपुष्ट आरोपों का दावा करते हुए याचिका दायर की गई थी।

उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ भाजपा की याचिका का उल्लेख सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष किया गया।

पीठ ने मामले का उल्लेख करने वाले वकील से पूछा, “आप अगली अवकाश पीठ में क्यों नहीं जाते?”

वकील ने पीठ को बताया कि उच्च न्यायालय ने भाजपा को लोकसभा चुनाव के दौरान चार जून तक विज्ञापन जारी करने से रोक दिया है। उन्होंने आग्रह किया कि मामले को 27 मई को सूचीबद्ध किया जाए।

पीठ ने कहा, “इसे 27 मई को अवकाश पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।”

उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा था कि भाजपा समीक्षा, संशोधन या आदेश को वापस लेने के लिए एकल न्यायाधीश के पास जा सकती है।

केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी ने खंडपीठ के समक्ष अंतर-न्यायालयीय अपील दायर की थी, जिसमें दावा किया गया था कि एकल न्यायाधीश की पीठ ने उसका पक्ष सुने बिना ही आदेश पारित कर दिया।

सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में भाजपा ने कहा है कि उच्च न्यायालय की खंडपीठ को इस बात पर विचार करना चाहिए था कि पक्ष को नहीं सुना गया और एकल न्यायाधीश द्वारा अंतरिम स्तर पर एकपक्षीय अनिवार्य निषेधाज्ञा दी गई।

इसमें कहा गया है, “यह रेखांकित करना उचित है कि उच्च न्यायालय द्वारा दी गई ऐसी अंतरिम राहत अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीएमसी/प्रतिवादी संख्या 1) द्वारा मांगी गई प्रार्थना से परे थी, जो केवल ईसीआई (भारत के चुनाव आयोग) को कानून के अनुसार कदम उठाने का निर्देश देने वाले अंतरिम आदेश देने तक सीमित थी।”

याचिका में दावा किया गया है कि एकल न्यायाधीश ने आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन के आधार पर “अंतरिम निषेधाज्ञा देकर गलती की है”, जबकि उन्होंने इस बात पर विचार नहीं किया कि मामला चुनाव आयोग के समक्ष लंबित है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 329 के साथ अनुच्छेद 324 के आधार पर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले किसी भी राजनीतिक दल के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का अधिकार है।

इसमें बताया गया है कि कुछ विज्ञापनों के प्रकाशन से व्यथित होकर, जो कथित तौर पर एमसीसी की भावना के विरुद्ध थे, टीएमसी ने चुनाव आयोग से संपर्क किया था।

इसमें कहा गया है कि टीएमसी की शिकायत के आधार पर चुनाव आयोग ने 18 मई को कारण बताओ नोटिस जारी किया और भाजपा को 21 मई तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

याचिका में कहा गया है, “20 मई 2024 को रिट याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध की गई थी। एकल न्यायाधीश ने यह देखने के बावजूद कि ईसीआई इस मुद्दे पर विचार कर रहा है और कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, एक व्यापक अंतरिम आदेश पारित करने के लिए आगे बढ़े, जो अंतिम आदेश की प्रकृति का है, जिससे याचिकाकर्ता (भाजपा) को 4 जून 2024 तक या अगले आदेश तक कथित रूप से आपत्तिजनक विज्ञापनों के प्रकाशन को जारी रखने से रोक दिया गया है।”

इसमें कहा गया है कि खंडपीठ को इस बात पर विचार करना चाहिए था कि मामले की सुनवाई एकल न्यायाधीश द्वारा की गई थी और आदेश भाजपा की अनुपस्थिति में पारित किया गया था, जिसका “चुनाव के दौरान प्रचार करने की उसकी क्षमता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है”।

याचिका में दावा किया गया है कि, “वर्तमान याचिकाकर्ता (भाजपा) को न तो सुनवाई का अवसर दिया गया और न ही इस विवाद को जन्म देने वाले तथ्यों का खंडन करने का अवसर दिया गया और केवल इसी कारण से, यह आदेश कानून की दृष्टि से खराब होने के कारण रद्द किए जाने योग्य है।”

इसमें कहा गया है, “आक्षेपित आदेश वर्तमान याचिकाकर्ता को दी गई अभिव्यक्ति की संवैधानिक गारंटी को प्रभावित करता है।”

अंतरिम राहत के तौर पर याचिका में 20 मई के अंतरिम आदेश के साथ-साथ उच्च न्यायालय द्वारा पारित 22 मई के आदेश के क्रियान्वयन पर एकपक्षीय रोक लगाने की मांग की गई है।

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